दिल्ली की पिच से सेट हो गई पंजाब की फील्डिंग, AAP के दूसरे गढ़ को हथियाने का बीजेपी ने बनाया सुपरप्लान
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दिल्ली की पिच से सेट हो गई पंजाब की फील्डिंग, AAP के दूसरे गढ़ को हथियाने का बीजेपी ने बनाया सुपरप्लान

BJP Punjab: जब मंत्रिमंडल गठन की बारी आई तो बीजेपी ने मनजिंदर सिंह सिरसा पर दांव लगाया है. सिरसा का गुरुद्वारा राजनीति में गहरा जुड़ाव है और पंजाब में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है. पंजाब में गुरुद्वारों और डेरों की सियासत का असर किसी से छिपा नहीं है और बीजेपी इसे अपने पक्ष में करने के प्रयास में है.

दिल्ली की पिच से सेट हो गई पंजाब की फील्डिंग, AAP के दूसरे गढ़ को हथियाने का बीजेपी ने बनाया सुपरप्लान

BJP Sikh outreach: आम आदमी पार्टी को दिल्ली में शिकस्त देने के बाद अब बीजेपी की नजर पंजाब पर है. इसके लिए बीजेपी ने अपना काम भी शुरू कर दिया है. दिल्ली के परिणामों को ही बीजेपी अब पंजाब में अपने राजनीतिक विस्तार का जरिया बना रही है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी ने तीन सिख नेताओं को टिकट दिया था और सभी जीत गए. फिर जब मंत्रिमंडल गठन की बारी आई तो बीजेपी नेतृत्व ने मनजिंदर सिंह सिरसा पर दांव लगाया है. सिरसा का गुरुद्वारा राजनीति में गहरा जुड़ाव है और पंजाब में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है. बीजेपी के इस फैसले को पंजाब चुनाव की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है.

सिरसा का पंजाब कनेक्शन
असल में मनजिंदर सिंह सिरसा पहले दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान रह चुके हैं. इसके अलावा वह पंजाब की राजनीति में भी सक्रिय रहे हैं और अकाली दल-बीजेपी गठबंधन सरकार के दौरान सुखबीर बादल के ओएसडी भी रह चुके हैं. बीजेपी सिरसा के जरिए पंजाब में अपने संगठन को मजबूत करने और सिख वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है. दो साल बाद होने वाले पंजाब विधानसभा चुनावों को देखते हुए बीजेपी इस फैसले को एक दूरगामी रणनीति के तौर पर आगे बढ़ा रही है.

दिल्ली चुनाव से पंजाब की राजनीति तक
इस बार बीजेपी के टिकट पर सिरसा के अलावा अरविंदर सिंह लवली और तरविंदर सिंह मारवाह ने भी जीत दर्ज की. लवली कांग्रेस में शीला दीक्षित सरकार में मंत्री रह चुके हैं और मारवाह भी लंबे समय तक कांग्रेस के साथ रहे हैं. हालांकि इनमें सिरसा ही ऐसे नेता हैं जो पंजाब की राजनीति में गहरी पैठ रखते हैं. हाल ही में डेरा ब्यास के प्रमुख बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों का सिरसा के आवास पर जाना इस बात का प्रमाण है कि बीजेपी धार्मिक और सामाजिक जुड़ाव को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है. पंजाब में गुरुद्वारों और डेरों की सियासत का असर किसी से छिपा नहीं है और बीजेपी इसे अपने पक्ष में करने के प्रयास में है.

किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में बीजेपी की चुनौती भी
पिछले कुछ वर्षों में किसान आंदोलन के कारण पंजाब में बीजेपी के प्रति असंतोष बढ़ा है. कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था जिससे पंजाब में बीजेपी की स्थिति कमजोर हुई. 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी महज दो सीटें जीत पाई और 2024 के लोकसभा चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुला. हालांकि केंद्र सरकार ने कृषि कानून वापस ले लिए हैं. लेकिन बीजेपी अभी भी सिख समुदाय के बीच खुद को सहज करने में जुटी है.

पंजाब में बीजेपी की भविष्य की रणनीति
वैसे तो बीजेपी अब तक अकाली दल की सहयोगी पार्टी के रूप में पंजाब में राजनीति करती रही है लेकिन अब वह अपने दम पर एक मजबूत विकल्प बनने की योजना बना रही है. पार्टी की रणनीति स्पष्ट है अकाली दल के कमजोर होने और आम आदमी पार्टी के दिल्ली में हारने के बाद बीजेपी खुद को एक मजबूत दावेदार के रूप में पेश करना चाहती है. दिल्ली में एक सिख नेता को मंत्री बनाकर पार्टी पंजाब में सकारात्मक संदेश देना चाहती है. बीजेपी का यह सुपर प्लान आगामी चुनावों में सिख समुदाय के बीच उसकी स्वीकार्यता बढ़ाने का प्रयास है. लेकिन क्या परिणाम होगा ये तो समय ही बताएगा.

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