अब सिर्फ जाने की देरी.. बिना पानी के भी मंगल पर बन जाएंगे घर, IIT मद्रास ने बना दिया मजबूत कंक्रीट!
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अब सिर्फ जाने की देरी.. बिना पानी के भी मंगल पर बन जाएंगे घर, IIT मद्रास ने बना दिया मजबूत कंक्रीट!

IIT मद्रास की एक टीम ने अंतरिक्ष में जीवन को बनाए रखने के लिए नई तकनीक पर काम किया है. यह टीम अंतरिक्ष उपनिवेशीकरण से जुड़ी चुनौतियों के समाधान खोजने पर केंद्रित है. इससे बनाए गए कंक्रीट की गुणवत्ता धरती के कंक्रीट जैसी ही मजबूत है.

अब सिर्फ जाने की देरी.. बिना पानी के भी मंगल पर बन जाएंगे घर, IIT मद्रास ने बना दिया मजबूत कंक्रीट!

Mars Construction Tech: मंगल ग्रह पर इंसानी बस्तियां बसाने का सपना अब हकीकत की ओर बढ़ रहा है. अंतरिक्ष एजेंसियां लगातार इस दिशा में काम कर रही हैं. लेकिन एक बड़ी चुनौती वहां निर्माण कार्य के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी है. विशेष रूप से पानी की अनुपलब्धता मंगल पर टिकाऊ ढांचे बनाने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है. इसी समस्या का समाधान खोजते हुए IIT मद्रास की एक टीम ने एक अनूठी तकनीक विकसित की है जो बिना पानी के इस्तेमाल के कंक्रीट बनाने में सक्षम है. यह शोध मंगल पर इंसानी बस्तियों की स्थापना के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है.

मंगल ग्रह पर निर्माण कार्य में मदद..
अंतरिक्ष एजेंसियां मंगल ग्रह तक भारी उपकरण पहुंचाने पर ध्यान दे रही हैं. यह रिसर्च उसी कड़ी का एक हिस्सा है. जो टीम इस पर लगी है उसे एक्सट्राटेरेस्ट्रियल मैन्युफैक्चरिंग ExTeM कहा जा रहा है. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक ExTeM टीम यह सुनिश्चित करने में जुटी है कि एक बार वहां पहुंचने के बाद अंतरिक्ष यात्री टिकाऊ जीवन व्यतीत कर सकें. इसी दिशा में एक अनोखा प्रयास किया गया है. ऐसा कंक्रीट तैयार किया गया है जो बिना पानी के इस्तेमाल के मंगल ग्रह पर निर्माण कार्य में मदद करेगा.

धरती के कंक्रीट जैसी ही मजबूत..
ExTeM टीम के पोस्ट-डॉक्टोरल शोधकर्ता अदित्य प्लेटो सिद्धार्थ ने बताया किहमने सल्फर युक्त एक यौगिक का उपयोग किया है जो मंगल पर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इससे बनाए गए कंक्रीट की गुणवत्ता धरती के कंक्रीट जैसी ही मजबूत है. चूंकि मंगल पर पानी की उपलब्धता सीमित है, इसलिए यह नवाचार वहां के बुनियादी ढांचे के निर्माण में बड़ी भूमिका निभा सकता है.

माइक्रोग्रैविटी ड्रॉप टॉवर भी विकसित..
टीम ने माइक्रोग्रैविटी ड्रॉप टॉवर भी विकसित किया है जो दुनिया में चौथा सबसे बड़ा है. यह शोधकर्ताओं को शून्य गुरुत्वाकर्षण में धातु फोम बनाने की प्रक्रिया को समझने में मदद करता है जिससे मंगल पर संरचनाओं को उल्कापिंडों से सुरक्षा मिल सकती है. इसके अलावा ExTeM टीम वेल्डिंग, 3डी प्रिंटिंग और बायोप्रिंटिंग जैसी तकनीकों में भी नए आयाम जोड़ रही है.

ExTeM पहल के प्रमुख प्रोफेसर सत्यन सुब्बैया ने कहा कि यह शोध सिर्फ अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए ही नहीं बल्कि पृथ्वी पर भी कई उपयोगी बदलाव ला सकता है. उन्होंने बताया हम अंतरिक्ष में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके पृथ्वी पर निर्भरता कम करने की दिशा में काम कर रहे हैं. भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छूने की तैयारी के बीच IIT मद्रास की यह टीम अंतरिक्ष में टिकाऊ जीवन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

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