हमेशा एक पैर ऊपर करके ही क्‍यों बैठते हैं भगवान शिव?
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हमेशा एक पैर ऊपर करके ही क्‍यों बैठते हैं भगवान शिव?

Lord Shiva sitting position: देवाधिदेव महादेव कैलास पर्वत पर वास करते हैं. मूर्ति, तस्‍वीरों आदि में ज्‍यादातर भगवान शिव एक पैर को मोड़कर उसे दूसरे पैर के ऊपर रखकर बैठते हैं. इसके पीछे भी एक खास वजह है.

हमेशा एक पैर ऊपर करके ही क्‍यों बैठते हैं भगवान शिव?

Lord Shiva sitting posture: भगवान शिव को देवों का देव कहा जाता है और सावन महीने के अलावा फाल्‍गुन मास में भी शिव जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. फाल्‍गुन मास में ही भगवान शिव और पार्वती जी का विवाह हुआ था. शिव-पार्वती जी के विवाह के पर्व को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है. इस साल 13 फरवरी से 14 मार्च तक फाल्‍गुन मास रहेगा. वहीं 26 फरवरी को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी. इस मौके पर जानिए भगवान शिव के बैठने का तरीका खास क्‍यों है, वे हमेशा एक पैर ऊपर करके दूसरे पैर पर रखकर ही क्‍यों बैठते हैं.
 
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शिव जी के बैठने की मुद्रा की है खास

भगवान शिव शंभू का एक पैर पृथ्वी को स्पर्श करता हुआ रहता है जबकि दूसरा पैर ऊपर घुटने की ओर मुड़कर रखते हैं. आमतौर पर शिव जी दाहिने पैर को मोड़कर बाएं पैर के ऊपर रखते हैं और यह आलती-पालती वाली मुद्रा में रहता है. शिव जी चाहे अकेले बैठे हों या पत्‍नी देवी पार्वती के साथ उनका एक पैर दूसरे पैर के ऊपर ही रहता है. इसके अलावा वे चाहे पत्‍थर पर विराजमान हों या नंदी पर, तब भी उनके बैठने की मुद्रा यही रहती है.

ये है वजह

भगवान शिव के एक पैर ऊपर करके बैठने के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण जिम्‍मेदार हैं. वैज्ञानिक दृष्टि से बात करें तो मनुष्य के शरीर में 3 नाड़ियां होती हैं, इदा, पिंगला और शुशमुना. इदा नाड़ी एक स्त्री नाड़ी होती है जो स्त्री ऊर्जा को शरीर में पैदा करती है. इसे चंद्र नाड़ी भी कहते हैं. वहीं, पिंगला नाड़ी मनुष्य में पुरुष ऊर्जा को जन्म देने का कार्म करती है और इसे सूर्य नाड़ी भी कहा जाता है. तीसरी शुशमुना नाड़ी एक चैनल या रास्ते की तरह काम करती है जिसके जरिये मनुष्य की कुंडलिनी ऊर्जा ऊपर की ओर चढ़ती है यानी कि पैरों से होते हुए मनुष्य के दिमाग तक जाने का काम करती है.

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जब एक पैर ऊपर और एक पैर नीचे करके बैठते हैं तो इन तीनों नाड़ियों के माध्यम से शरीर में स्त्री और पुरुष ऊर्जा का सामान रूप से संचार होता है और दोनों ही तत्वों का समान रूप से शरीर में स्थान बना रहता है.

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वहीं शिव जी के बैठने की मुद्रा को लेकर आध्यात्मिक कारण की बात करें तो यह इंद्रियों को नियंत्रित करता है. जब व्‍यक्ति की इंद्रियां नियंत्रित रहती हैं तो उस अवस्था में किया गया जाप, भजन, ध्यान, मंत्रोच्चार आदि करने से भगवान की प्राप्ति जल्‍दी होती है.

(Disclaimer - प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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