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Desi Jugaad Technology: आपने बॉलीवुड की फिल्म "टार्जन: द वंडर कार" देखी होगी, जिसमें एक कार अपने दुश्मनों से बदला लेने के लिए खुद ही चल पड़ती है. ऐसा ही एक दृश्य अब गुजरात के अमरेली जिले के खेतों में भी देखा जा सकता है, जहां एक किसान ने अपने खेतों में ड्राइवरलेस ट्रैक्टर का उपयोग करना शुरू किया है. यह ट्रैक्टर बिना ड्राइवर के अपने आप खेतों की जुताई करता है, जिससे समय और ईंधन की बचत हो रही है.
किसान ने अपनाया नया तकनीकी तरीका
कृषि हमेशा से श्रम-प्रधान मानी जाती रही है, लेकिन अब नई तकनीक से कई कामों में आसानी हो गई है. आजकल किसान बीज बोने के लिए ट्रैक्टर का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अमरेली के 31 साल के किसान राहुल आहिर ने इसे एक कदम आगे बढ़ाया है. राहुल ने अपने ट्रैक्टर में GPS सिस्टम लगवाया है, जो बीज बोने के लिए पहले से निर्धारित रास्तों पर ट्रैक्टर को चलाता है. इस ऑटोमेशन के कारण 50% काम ड्राइवरलेस हो गया है और बीज बोने की लाइन भी बिल्कुल सीधी और सटीक रहती है.
जर्मन तकनीक का इस्तेमाल
फार्मिंग में नई तकनीक के आने से काम आसान हुआ है, लेकिन बीज बोने और इंटरक्रॉपिंग जैसे कार्य अभी भी चुनौतीपूर्ण होते हैं. गलत तरीके से बीज बोने से 8% तक फसल का नुकसान हो सकता है. पहले, ट्रैक्टर चलाने वाले को स्टीयरिंग और हाइड्रोलिक सिस्टम को एक साथ संभालना पड़ता था, जिससे समय भी लगता था और मेहनत भी ज्यादा होती थी.
राहुल ने इस समस्या का हल खोजने के लिए GPS तकनीक का सहारा लिया. अब उनका ट्रैक्टर ऑटोमेटेड तरीके से आधा काम करता है और सटीक तरीके से बीज बोता है, जिससे श्रम की बचत होती है. राहुल अब अपनी 40 बीघा जमीन पर इस नई तकनीक से खेती कर रहे हैं.
कैसे काम करता है ऑटोमेशन सिस्टम?
आकाश प्रजापति एक मोबाइल ऑटोमेशन कंपनी के इंजीनियर हैं, बताते हैं कि यह GPS आधारित सिस्टम है, जिससे किसान अपने बीज बोने के रास्तों को पहले से तय कर सकते हैं. ट्रैक्टर पर विशेष उपकरण लगाया जाता है, जो ट्रैक्टर की स्टीयरिंग को खुद ही कंट्रोल करता है. किसान को सिर्फ खेत के किनारे पर ट्रैक्टर घुमा कर उसे चलाना होता है.
यह तकनीक समय बचाती है और डीजल की खपत को भी कम करती है. किसानों के लिए यह तकनीक बहुत लाभकारी साबित हो रही है क्योंकि इससे शारीरिक और मानसिक थकान कम होती है और उत्पादकता बढ़ती है.
किसान को मिल रही है लागत में बचत
राहुल बताते हैं कि अधिकतर फसल बोने और काटने के समय कुशल ड्राइवर मिलना मुश्किल हो जाता है और जब मिलते हैं तो वे ₹500 से ₹1000 प्रति दिन के हिसाब से काम करते हैं. इस नई तकनीक से किसानों को महंगे श्रमिकों की जरूरत नहीं पड़ती. अब कोई भी ट्रैक्टर चलाने वाला व्यक्ति इस सिस्टम का इस्तेमाल कर आसानी से बीज बो सकता है.
राहुल का ट्रैक्टर दो GPS सिस्टम और एक ऑटोमेटिक स्टीयरिंग मैकेनिज्म से लैस है, जिसकी लागत लगभग ₹4 लाख है. इस तकनीक से काम की गति तेज हो गई है और जो काम पहले 12 घंटे में होता था, वह अब सिर्फ 8 घंटे में हो जाता है.