फजीहत के बाद रेलवे ने बदला जवाब, कहा-एक नहीं महीने में दो बार धुलते हैं कंबल...फिर भी तो 15 यात्री ओढ़ चुके हैं, हाइजिन कहां ?
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फजीहत के बाद रेलवे ने बदला जवाब, कहा-एक नहीं महीने में दो बार धुलते हैं कंबल...फिर भी तो 15 यात्री ओढ़ चुके हैं, हाइजिन कहां ?

भारतीय रेलों की ट्रेनों में इस्तेमाल होने वाले बेडरोल कंबलों को लेकर बीते कुछ दिनों से विवाद शुरू हो गया.

फजीहत के बाद रेलवे ने बदला जवाब, कहा-एक नहीं महीने में दो बार धुलते हैं कंबल...फिर भी तो 15 यात्री ओढ़ चुके हैं, हाइजिन कहां ?

Indian Railway: भारतीय रेलों की ट्रेनों में इस्तेमाल होने वाले बेडरोल कंबलों को लेकर बीते कुछ दिनों से विवाद शुरू हो गया. कांग्रेस के सांसद कुलदीप इंदौरा ने कंबल की धुलाई और साफ-सफाई को लेकर संसद में सवाल किया.  इसके लिखित जवाब में रेल मंत्री वैष्णव ने बताया कि ट्रेनों में इस्तेमाल होने वाले कंबल महीने में कम से कम एक बार धुलाई के लिए जाते हैं. रेल मंत्री के इस बयान के बाद रेलवे की खूब फजीहत हुई. लोगों ने हाइजीन को लेकर सवाल उठाया कि एक महीने में उस कंबल को 30 पैसेंजर ओढ़ लेते हैं. अब फजीहत के बाद रेलवे ने अपना जवबा बदल लिया है. रेलवे ने जवाब दिया है कि  साल 2016 से ही कंबल की सफाई महीने में दो बार की जाती है.  

कंबलों की सफाई पर रेलवे की फजीहत  
 
उत्तर रेलवे की तरफ से दावा किया गया कि कंबलों की महीने में दो बार सफाई की जाती है.  लेकिन फिर भी लोगों को रेलवे का ये रवैया पसंद नहीं आ रहा है. महंगे टिकट पर सफर के दौरान हाइजीन को लेकर सवाल उठाए हैं. अगर 15 दिन पर भी धुलाई होती है तो इसका मतलब ये कि आपसे पहले 15 लोग उसी कंबल का इस्तेमाल कर चुके होते हैं. 

साफ-सफाई को लेकर रेलवे की सफाई 

यात्रियों को नई आरामदायक लेनिन की ज्यादा चौड़ी-लंबी चादर, अच्छी गुणवत्ता के साफ-सुथरे कंबल और खाने से लेकर तमाम चीजें इनमें शामिल हैं. अब रेलवे ने हर ट्रिप के बाद यूवी सेनेटाइजेशन प्रक्रिया शुरू की है. उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंचार अधिकारी हिमांशु शेखर उपाध्याय के मुताबिक रेलवे में उपयोग होने वाले लेनिन की सफाई हर उपयोग के बाद की जाती है. लेनिन की सफाई विशेष रूप से मैकेनिकल लॉन्ड्री में होती है, जो पूरी तरह से निगरानी में होती है, जिसमें सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं और पूरी प्रक्रिया की निगरानी की जाती है. इसके अलावा, समय-समय पर अधिकारियों और पर्यवेक्षकों द्वारा आकस्मिक निरीक्षण भी किया जाता है. मीटर से सफेदी की जांच करने के बाद ही लेनिन को आगे यात्रियों को दिया जाता है. 

उन्होंने कहा, उत्तर रेलवे द्वारा गुणवत्ता सुधार के लिए नए मानक लागू किए जा रहे हैं. इस समय यह सुधार राजधानी, तेजस जैसी विशेष और प्रतिष्ठित ट्रेनों में पायलट आधार पर लागू किया जा रहा है.  ये नई प्रकार की लेनिन बेहतर गुणवत्ता की हैं, इनके आकार बड़े हैं और फैब्रिक भी ज्यादा अच्छा है, जिससे यात्री बेहतर अनुभव कर सकते हैं और ज्यादा संतुष्ट हो सकते हैं.  ब्लैंकेट की सफाई को लेकर साल 2010 से पहले सफाई का प्रोटोकॉल था कि उसे हर दो या तीन महीने में एक बार साफ किया जाता था, लेकिन अब यह प्रक्रिया हर महीने में दो बार की जा रही है.  जहां लॉजिस्टिक समस्याएं होती हैं, वहां इसे महीने में कम से कम एक बार साफ किया जाता है. 

इसके अलावा, उत्तर रेलवे हर 15 दिन में नेफ्थलीन वेपर हॉट एयर क्रिस्टलाइजेशन का प्रयोग करता है, जो एक बहुत प्रभावी और समय-परीक्षित तरीका है. इस प्रक्रिया से यात्रियों को एक बेहतर सफाई और सुविधा प्रदान की जाती है. उन्होंने कहा, अभी पायलट प्रोजेक्ट के रूप में यूवी सैनिटाइजेशन की शुरुआत की गई है, जिसमें हर राउंड ट्रिप पर अब ब्लैंकेट को यूवी किरणों से सैनिटाइज किया जाएगा। यह एक बहुत ही उन्नत और आधुनिक तकनीक है, जो आजकल व्यापक रूप से इस्तेमाल की जा रही है. इस प्रक्रिया को फिलहाल दो राजधानी ट्रेनों, जम्मू राजधानी और डिब्रूगढ़ राजधानी में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया गया है.  इस प्रयोग से मिले अनुभवों के आधार पर इसे भविष्य में अन्य ट्रेनों में भी लागू किया जाएगा.  

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