कल्पवास खत्म, 30 दिन की तपस्या के बाद महाकुंभ से घर लौटे 10 लाख से ज्यादा कल्पवासी
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कल्पवास खत्म, 30 दिन की तपस्या के बाद महाकुंभ से घर लौटे 10 लाख से ज्यादा कल्पवासी

Mahakumbh 2025: प्रयागराज में संगम किनारे 45 दिनों तक चलने वाला महाकुंभ अपने अंतिम पड़ाव की ओर है. महाकुंभ मेले में अभी एक और प्रमुख स्‍नान बाकी है. प्रयागराज कुंभ मेला में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है. 

Mahakumbh 2025 Kalpwas

Mahakumbh 2025: प्रयागराज में चल रहा महाकुंभ आखिरी पड़ाव की ओर है. महाकुंभ मेले का स्‍नान 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा पर संपन्न हो गया है. अब इसके बाद अंतिम स्‍नान महाशिवरात्रि 26 फरवरी को है. महाशिवरात्रि स्‍नान के बाद ही महाकुंभ का समापन भी हो जाएगा. लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि कल्‍पवास कब खत्‍म होगा? कल्पवास पौष पूर्णिमा से  माघ पूर्णिमा तक एक महीने में समाप्त हो गया है, अब कल्पवासी घरों की ओर लौटने लगे हैं.  

कब पूरा होगा कल्‍पवास?
इस बार महाकुंभ में 10 लाख से अधिक लोगों ने विधि पूर्वक कल्पवास करने संगम पहुंचे हैं. पौराणिक मान्यता है कि माघ मास में प्रयागराज में संगम तट पर कल्पवास करने से कई वर्षों के तप का फल मिलता है. महाकुंभ में कल्पवास करना विशेष फलदायी माना जाता है. परंपरा के मुताबिक, 12 फरवरी माघ पूर्णिमा के दिन कल्पवास की समाप्ति हो जाती है. इस दिन सभी कल्पवासी विधि पूर्वक पूर्णिमा तिथि पर पवित्र संगम में स्नान कर कल्पवास का पारण कर लेते हैं. पूजन और दान के बाद कल्पवासी अपने अस्थाई आवास त्याग कर दोबारा अपने घरों की ओर लौट रहे हैं. 

कल्‍पवास करने की मान्‍यता 
शास्त्र अनुसार, कल्पवास की समाप्ति 12 फरवरी, माघ पूर्णिमा के दिन के दिन होती है. पद्मपुराण के मुताबिक, पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा एक माह संगम तट पर व्रत और संयम का पालन करते हुए सत्संग का विधान है. कुछ लोग पौष माह की एकादशी से माघ माह में द्वादशी के दिन तक भी कल्पवास करते हैं. 12 फरवरी के दिन कल्पवासी पवित्र संगम में स्नान कर कल्पवास के व्रत का पारण करते हैं. पद्म पुराण में भगवान द्तात्रेय के बनाए नियमों के अनुसार कल्पवास का पारण किया जाता है. कल्पवासी संगम स्नान कर अपने तीर्थपुरोहितों से नियम अनुसार पूजन कर कल्पवास व्रत पूरा करते हैं.  

कल्पवास के बाद कथा और हवन 
शास्त्रों के अनुसार, कल्पवासी माघ पूर्णिमा के दिन संगम स्नान कर व्रत रखते हैं. इसके बाद अपने कल्पवास की कुटीरों में आकर सत्यनारायण कथा सुनने और हवन पूजन करने का विधान है. कल्पवास का संकल्प पूरा कर कल्पवासी अपने तीर्थपुरोहितों को यथाशक्ति दान करते हैं. साथ ही कल्पवास के प्रारंभ में बोये गये जौ को गंगा जी में विसर्जित कर और तुलसी जी के पौधे को साथ घर ले जायेंगे. तुलसी जी के पौधे को सनातन परंपरा में मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है. 

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