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बेहद ही खूबसूरत है मालवा का ये किला, 1857 के विद्रोह का रहा है गवाह

mp tourism-मध्यप्रदेश में अनेकों किलें और उनके इतिहास से जुड़ी कई पुरातत्व इमारतें हैं. इन्ही में से धार का किला भी है, मालवा क्षेत्र के धार में छोटी सी पहाड़ी पर आयातकार आकार में बना यह किला अपनी भव्यता और इतिहास के लिए जाना जाता है. इस किले के बारे में कहा जाता है कि यह अनेकों बार उतार-चढ़ाव देख चुका है. इस प्राचीन किले में 15वीं और 16वीं शताब्दी के भी भवनों के अवशेष मौजूद हैं. 

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धार के किले का निर्माण 1344 में महमूद तुगलक ने करवाया था. एक आयताकार पहाड़ी की चोटी पर स्थित, किला लाल पत्थर, काले पत्थर और ठोस मुरम से खूबसूरती से बनाया गया है. 

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यह किला हिन्दू, मुस्लिम और अफगान शैली में बना हुआ है जो आने वाले पर्यटकों को खूब लुभाता है. धार किला और भोजशाला मन्‍दिर पर्यटकों को अपनी तरफ काफी आकर्षित करता है.

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किले का मुख्य प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर है, हालांकि यह तीन द्वारों से मजबूती से सुरक्षित है. इस किले का तीसरा द्वार औरंगजेब के शासनकाल में बनाया गया था. किले के तीसरे द्वार पर औरंगजेब के शासनकाल और शाहजहां के सौतेले भाई अशर बेग के राज के दौरान का एक शिलालेख मौजूद है.

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पेशवा बाजीराव द्वितीय का जन्म 1775 ई. में इसी किले में हुआ था. 1857 के विद्रोह दौरान इस किले का महत्व बढ़ गया था. क्रांतिकारियों ने विद्रोह के दौरान इस किले पर अधिकार कर लिया था. बाद में ब्रिटिश सेना ने किले पर दोबारा अपना अधिकार कर लिया.

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1857 के विद्रोह के दौरान इस किले पर कब्जा करने के लिए जनरल स्टीवर्ट ने भारतीय सेनानियों को हटाने के लिए तोपों के इस्तेमाल का आदेश दिया था. छः दिनों तक बमबारी कर अंग्रजों ने दोबारा अपने नियंत्रण में ले लिया था. 

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इस युद्ध के दौरान जिन तोपों से अंग्रेजों ने वीरों पर हमला किया था, वे वर्तमान में किले के अंदर संग्रहालय में प्रदर्शित हैं. किले के अंदर और भी कई ऐतिहासिक इमारतें मौजूद हैं, जिनमें खरबूजा महल, शीश महल और विश्राम महल जैसी सरंचनाएं हैं.