Budget 2025: यह समझना बहुत जरूरी है कि मोदी सरकार का यह फैसला सिर्फ आर्थिक ही नहीं बल्कि एक ठोस राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी है. खासकर टैक्स स्लैब में बदलाव करना बहुत धमाकेदार ट्विस्ट है. यह एक तरह से बजट के धनुष से छोड़ा गया यह 350 सीटों का तीर है जो मिडिल क्लास के समर्थन को बनाए रख सकता है. लेकिन कैसे आइए जानते हैं.
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Middle Class Tax Relief: ऐसा लग रहा है कि इस बार के बजट ने मिडिल क्लास के लिए खुशियों का पिटारा खोल दिया है. कम से कम नए टैक्स स्लैब में हुए बदलावों के बाद आ रहीं प्रतिक्रियाओं को देखकर तो ऐसा ही लग रहा है. लेकिन यह सब अचानक नहीं हुआ है. इसके लिए लंबे समय से परदे के पीछे मीटिंग्स और चर्चाओं का दौर चला है. तब जाकर बजट में मोदी सरकार ने मिडिल क्लास को बड़ी राहत देते हुए एक महत्वपूर्ण ऐलान किया. अब 12 लाख रुपये तक की आय को टैक्स के दायरे से बाहर कर दिया गया है जिससे लाखों नौकरीपेशा और मध्यम वर्गीय परिवारों को सीधा फायदा होगा. यह फैसला आर्थिक रूप से इस वर्ग को संबल देने वाला है ही साथ में राजनीतिक रूप से भी अहम है. देश की लगभग 350 लोकसभा सीटों पर मिडिल क्लास की निर्णायक भूमिका मानी जाती है. यह सब कैसे हुआ इसकी क्रोनोलॉजी समझने की जरूरत है.
दरअसल मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले पूर्णकालिक बजट से पहले इस बात की अटकलें तेज थीं कि सरकार मिडिल क्लास के लिए कुछ बड़ी घोषणाएं करेगी. एक्सपर्ट्स का मानना है कि सरकार और बीजेपी पर इस वर्ग की बढ़ती नाराजगी का दबाव था. पिछले कुछ महीनों में मिडिल क्लास ने आर्थिक नीतियों और कर संरचना को लेकर खुलकर अपनी असंतुष्टि जाहिर की थी. यह वही तबका है जो लंबे समय से बीजेपी का मजबूत समर्थक रहा है. लेकिन हाल के दिनों में इसे लगा कि सरकार उसकी जरूरतों को अनदेखा कर रही है. इस नाराजगी को दूर करना बीजेपी के लिए जरूरी था. क्योंकि यह वर्ग चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
मध्यम वर्ग पिछले कुछ वर्षों से कई आर्थिक दबावों का सामना कर रहा था. महामारी के दौरान इस वर्ग ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन उसके बाद भी महंगाई, बढ़ते कर और फ्रीबीज की राजनीति के बीच इसकी उपेक्षा महसूस की जा रही थी. कई योजनाओं और सब्सिडी का लाभ आमतौर पर निम्न आय वर्ग को मिलता है जबकि अमीरों को अलग तरह की कर छूट और निवेश के अवसर उपलब्ध होते हैं. ऐसे में मिडिल क्लास खुद को एक भुला दिया गया तबका मानने लगा था. यही कारण है कि सरकार को इस वर्ग के लिए राहत देने का फैसला लेना पड़ा ताकि उनकी बढ़ती नाराजगी को रोका जा सके और समर्थन बनाए रखा जा सके.
हालांकि संख्या के लिहाज से मिडिल क्लास देश की सबसे बड़ी आबादी नहीं है. लेकिन इसकी राय और नैरेटिव सेट करने की क्षमता सबसे अधिक है. यही वजह है कि बीजेपी ने इसे साधने की रणनीति बनाई. देश की लगभग 350 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मिडिल क्लास की मजबूत उपस्थिति है और वे चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं. इसके अलावा, विपक्षी पार्टियों को भी यह एहसास हो गया था कि मिडिल क्लास के बीच उनकी पैठ बनाने का यही सही समय है. दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान अरविंद केजरीवाल ने इस मुद्दे को उठाया, और अन्य विपक्षी दल भी इस वर्ग से जुड़े मुद्दों को भुनाने में जुट गए. बीजेपी के लिए यह जोखिम था कि अगर उसने इस तबके को संतुष्ट करने में देरी की, तो विपक्ष इसका फायदा उठा सकता था.
एक्सपर्ट्स का साफ कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले मोदी सरकार ने इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव किया था, जिससे उसे बड़ा राजनीतिक लाभ मिला था. इस बार भी सरकार इसी पैटर्न पर चली और पहले ही साल में मिडिल क्लास को राहत देकर स्पष्ट संकेत दे दिया कि वह इस वर्ग की चिंताओं को लेकर गंभीर है. यूपीए-2 सरकार के दौरान 2011-12 में जब मिडिल क्लास में पहली बार बड़े पैमाने पर असंतोष पनपा था तो इसका असर 2014 के चुनाव में साफ दिखा था. बीजेपी यह जोखिम नहीं लेना चाहती थी कि नाराजगी इतनी बढ़ जाए कि इसे संभालना मुश्किल हो जाए. इसलिए इस बजट में मिडिल क्लास को खुश करने के लिए एक मजबूत संदेश दिया गया है. जिससे सरकार के प्रति उनके विश्वास को फिर से बहाल किया जा सके.