Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि पर शिव रुद्राष्टकम का पाठ दुश्मन के छक्के छुड़ा देगा, महादेव करेंगे कृपा
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Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि पर शिव रुद्राष्टकम का पाठ दुश्मन के छक्के छुड़ा देगा, महादेव करेंगे कृपा

Shiv Rudrashtakam in hindi lyrics: महाशिवरात्रि के दिन शिव भक्तों में बहुत उल्लास होता है. इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है और शिवलिंग पर जलाभिषेक कर भगवान की कृपा और आशीर्वाद पाया जाता है. आइए जानें इस बारे में और अधिक.

Shiv Rudrashtakam On Mahashivratri 2025

Shiv Rudrashtakam in hindi: महाशिवरात्रि का पर्व इस साल फरवरी महीने की 26 तारीख को पड़ रही है. इस दिन महादेव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. ऐसे में इस दिन को पूरी तरह शिव और शक्ति को समर्पित किया गया है. इस दिन शिव भक्त शिवमंदिर जाकर भोलेनाथ की आराधना करते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं. ऐसा करने से भगवान की कृपा बरसती है. इस दिन भोलेनाथ को एक लोटा जल अर्पित करके भी प्रसन्न किया जा सकता है. 

श्रीराम ने किया था पाठ
कहते हैं कि 7 दिनों तक अगर शिव मंदिर या घर में कुशासन पर बैठकर 'शिव रुद्राष्टकम' का पाठ पूरे मन से करें तो महादेव साधक के जीवन के सारे संकट दूर करते हैं. शत्रुओं का नाश होने लगता है. मान्यता है कि भगवान राम ने जब रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापित कर शिव जी की आराधना की. इसी समय उन्होंने शिव रुद्राष्टकम का पाठ किया था. जिसका परिणाम ये था कि रावण का उन्होंने अंत कर दिया. 

श्री शिव रुद्राष्टकम
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्। करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्। स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्। मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्। त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी। चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्। न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्। जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये ये पठन्ति। नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम्॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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