Home Loan vs Rent: घर खरीदें या किराए पर रहें? घर खरीदने से लंबी अवधि की स्थिरता मिलती है, जबकि किराये पर रहने से Flexibility मिलता है. अगर आप भी इसी उलझन में हैं तो यह खबर आपके लिए है.
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Is It Better to Rent or Buy: जब बात घर की आती है तो सबसे बड़ा सवाल यही उठता है- खरीदें या किराये पर रहें? यह एक ऐसा फैसला है जो न केवल आपकी आर्थिक स्थिति बल्कि करियर, लाइफस्टाइल और भविष्य की योजनाओं पर भी निर्भर करता है. अगर आप भी इसी उलझन में हैं, तो यह खबर आपके लिए है.
48 वर्षीय राजेश एक एजुकेशन सॉल्यूशंस कंपनी में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट हैं. साल 2014 में वह बेंगलुरु से मुंबई शिफ्ट हुए. शुरुआत में उन्होंने किराये पर रहना सही समझा, लेकिन हर महीने 35,000 रुपये किराये के रूप में जाते देख, उन्होंने मुंबई में ही 60 लाख रुपये का एक फ्लैट खरीद लिया. इसके लिए उन्हें हर महीने लगभग 60,000 रुपये EMI चुकानी पड़ रही है.
वहीं, 38 वर्षीय ऋषि आर्य जो वडोदरा में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत हैं, पिछले 10 सालों से किराये के घर में रह रहे हैं. वे कहते हैं, "अभी घर खरीदने का मतलब होगा मेरी सैलरी का बड़ा हिस्सा EMI में चला जाना, इसलिए फिलहाल 18,000 रुपया किराया देना ज्यादा समझदारी भरा लग रहा है."
अब सवाल उठता है कि कौन-सा फैसला बेहतर है?
रेजिडेंशियल ट्रांजैक्शन सर्विसेज कोलियर्स इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर रवि शंकर सिंह इस पर कहते हैं कि लंबी अवधि में घर खरीदने और किराये पर रहने के बीच का अंतर समझना जरूरी है. बैंक लोन पर ब्याज दरें बदलती रहती हैं, जिससे EMI का बोझ बढ़ या घट सकता है.
भारत में रेंटल यील्ड (किराया बनाम प्रॉपर्टी कीमत का अनुपात) 2.5-4.5% के बीच रहता है, जबकि होम लोन की ब्याज दरें 8.1% या उससे अधिक हो सकती हैं. घर खरीदने से लंबी अवधि की स्थिरता मिलती है, जबकि किराये पर रहने से Flexibility मिलता है.
घर खरीदने के फायदे और नुकसान
फायदे- स्थिरता और सुरक्षा, प्रॉपर्टी की कीमत बढ़ने का फायदा, भविष्य में किराये की चिंता नहीं
नुकसान- डाउन पेमेंट और EMI का बड़ा बोझ, संपत्ति का रखरखाव खर्च, शहर बदलने में दिक्कत
किराये पर रहने के फायदे और नुकसान
फायदे- कम खर्च, EMI जैसी बड़ी जिम्मेदारी नहीं, जॉब या शहर बदलने में आसानी, बचे हुए पैसे को अन्य निवेश में लगाने का मौका
नुकसान- हर साल बढ़ता किराया, संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं, रेंट पर रहने की अस्थिरता
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
ज़ेनिथ फिनसर्व के फाउंडर अनुज केसारवानी एक उदाहरण देते हैं- राज ने 2016 में 43 लाख रुपये का घर खरीदा और 20 साल के लोन पर 8.5% ब्याज चुकाया. कुल लागत (ब्याज सहित) ₹80 लाख बैठी. वहीं, विजय ने वही घर खरीदने की बजाय ₹25,000 महीने का किराया दिया और बचे पैसे को म्यूचुअल फंड (SIP) में 12% के सालाना रिटर्न के साथ निवेश किया.
नतीजा यह हुआ कि 13 साल 5 महीने में विजय के पास उतनी रकम हो गई कि वह घर कैश में खरीद सकता था, जबकि राज अभी भी EMI चुका रहा होगा.
घर खरीदना या किराये पर रहना क्या सही है?
अगर आप किसी शहर में स्थाई रूप से बसने का प्लान कर रहे हैं और EMI का बोझ उठाने में सक्षम हैं, तो घर खरीदना एक अच्छा फैसला हो सकता है. वहीं, अगर आप जॉब चेंज या शहर बदलने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो किराये पर रहना समझदारी होगी. अंत में, यह फैसला पूरी तरह आपकी व्यक्तिगत, करियर और आर्थिक प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है.