E-Rickshaw: विदेश की नौकरी छोड़कर लौटे भारत और बना दी देश की पहली प्रदूषण मुक्त ई-रिक्शा!
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E-Rickshaw: विदेश की नौकरी छोड़कर लौटे भारत और बना दी देश की पहली प्रदूषण मुक्त ई-रिक्शा!

E-Rickshaw in India: आज भारत के हर एक शहर की गलियों में आपको ई-रिक्शा नजर आ जाएगा. ई-रिक्शा ने लोगों की जिंदगी काफी आसान बना दी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस ई-रिक्शा को भारत में किसने स्टार्ट किया और कौन है इस ई-रिक्शा के जनक? आइए जानते हैं. 

E-Rickshaw: विदेश की नौकरी छोड़कर लौटे भारत और बना दी देश की पहली प्रदूषण मुक्त ई-रिक्शा!

Father of E-Rickshaw in India: रिक्शा हमारे देश में छोटी दूरी तय करने के लिए सबसे अहम साधन है. प्राचीन काल से लेकर वर्तमान काल तक रिक्शा ने आम लोगों की जिंदगी में एक अहम रोल निभाया है. वक्त के साथ-साथ रिक्शों की तकनीक में बदलाव होता गया, लेकिन हर दौर में रिक्शा लोगों के लिए बेसिक जरूरतों की तरह बना रहा. पहले रिक्शे को लोग अपनी ताकत के सहारे खींचते थे, धीरे-धीरे इंसान की जगह रिक्शा को खींचने का काम जानवरों से लिया जाना लगा. वक्त थोड़ा और बदला, विज्ञान ने तरक्की की और फिर रिक्शे से जानवर भी हट गए और ईजाद हुआ पैडल वाले रिक्शे का...वक्त गुजरता गया और साइंस तरक्की करती गई. और फिर भारत में एक वैज्ञानिक ने ऐसा रिक्शा तैयार किया, जिसने इंसान और जानवर दोनों के काम को आसान और हल्का बना दिया. मैं बात कर रहा हूं 'ई-रिक्शा' की, जिसने काफी कम वक्त में गलियों से लेकर शहरों तक लोगों के दिलों में एक अलग जगह बना ली. अब हर इंसान ई रिक्शा में सफर करना पसंद करता है. ऐसे में आज जानते हैं कि आखिर किसने भारत में देश का पहला ईं रिक्शा बनाया..आइए जानते हैं. 

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ई-रिक्शा ने गायब कर दिया पैर वाले रिक्शे को
ई-रिक्शा मार्केट में आने के बाद पैर से खींचने वाला रिक्शा कहीं गायब सा हो गया है. लोगों को बहुत मुश्किल से पुराना रिक्शा सड़कों पर दिख जाता है. उसकी सबसे बड़ी वजह है पैसा. पैर से खींचने वाले रिक्शे में सिर्फ दो लोग बैठ सकते हैं, और उसे इंसान अपनी ताकत से खींचता है. इसलिए चालक सवारी से ज्यादा पैसे की उम्मीद करते हैं. ऐसे में वहीं ई-रिक्शा में एक साथ 5-6 लोग बैठ सकते हैं, और उसे मशीन की मदद से खींचा जाता है, जिसकी वजह उसमें सवारी को कम पैसे देने पड़ते हैं. इसलिए सवारी भी पहले ई-रिक्शा में ही सफर करना चाहता है. ये ई-रिक्शा प्रदूषण रहित भी होते हैं. 

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पर्यावरण के लिए बेहतर विकल्प
ई-रिक्शा लोगों के आराम से साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी काफी अनुकूल है. ये ना प्रदूषण फैलाता है, और ना ही शोर मचाता है, जिसकी वजह से लोगों को शहर की ट्रैफिक में भी ज्यादा टेंशन नहीं होती है. भारत में इस ई-रिक्शा को शुरु करने का क्रेडिट भारतीय वैज्ञानिक और इंजीनियर डॉ. अनिल कुमार राजवंशी को जाता है. ये उनके ही दिमाग की उपज है. 

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IIT कानपुर के छात्र थे डॉ. अनिल राजवंशी
इंजीनियर डॉ. अनिल राजवंशी IIT कानपुर के छात्र थे. उन्होंने साल 1995 में महाराष्ट्र के फाल्टन में ई-रिक्शा पर काम करना स्टार्ट किया. इसके पांच साल बाद साल 2000 में उन्होंने इस ई-रिक्शा का पहला प्रोटोटाइप तैयार किया. जिसके बाद पहली बार पूरी दुनिया ने रिक्शे का एक नया अवतार देखा. दुनिया के सामने आने के बाद कई कंपनियों ने इस ई-रिक्शा को कॉपी किया और अपने-अपने दिमाग से इसमें सुधार करते चले गए. 

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अमेरिका से वापस लौटे भारत 
IIT कानपुर से पढ़ाई करने के बाद डॉ. अनिल राजवंशी आगे की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका के फ्लोरिडा चले गए. लेकिन वहां कुछ वक्त रहने के बाद वह वापस अपने वतन लौट आए. उनके इस फैसले से उनके पिता काफी नाराज भी हुए, लेकिन डॉ. अनिल राजवंशी को अपना मकसद याद था. इस काम में उनकी पत्नी ने उनका पूरा साथ दिया. और फिर एक दिन डॉ. अनिल राजवंशी की मेहनत रंग लाई और वह भारत में ई-रिक्शा के जनक बन गए. 

ई-रिक्शा ने बदली लोगों की जिंदगी 
ई-रिक्शा के अलावा डॉ. अनिल राजवंशी ने एल्कोहल पर काम करने वाले स्टोव का भी ईजाद किया, जो केरोसिन से चलने वाले और आज कल के कुकिंग स्टोव्स से कहीं ज्यादा बेहतर साबित हुआ. ई-रिक्शा के आने के बाद कई ऑटो और कार ड्राइवर ई-रिक्शा चलाने लगे, क्योंकि इसमें चालकों को पेट्रोल-डीजल के खर्चे से आजादी मिल गई. और इस ई-रिक्शा का मेनटेनेंस भी काफी बजट फ्रेंडली है. 

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