MP News: उज्जैन के प्रसिद्ध चौबीस खंबा स्थित देवी महामाया और देवी महालाया माता मंदिर में नवरात्रि की महाअष्टमी पर विशेष पूजा की जाती है. यहां सालों से मदिरा चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है. खास बात यह है कि माता को मदिरा चढ़ाने का काम साधु-संतों के साथ-साथ जिले के अधिकारी भी करते हैं.
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Ujjain News: उज्जैन में चौबीस खंबा स्थित देवी महामाया और देवी महालाया माता मंदिर एक ऐसा स्थान है, जहां महाअष्टमी पर्व पर माता को देशी मदिरा का भोग लगाया जाता है. इतना ही नहीं इस मंदिर में आने वाले भक्तों को भी प्रसाद के रूप में शराब ही बांटी जाती है. साल में आने वाले दोनों नवरात्रों पर इस परंपरा को साधु संत के साथ जिलाधिकारी भी पुजारी के माध्यम से निभाते हैं.
इस परम्परा को लेकर ऐसा माना जाता है कि ये परंपरा राजा विक्रमादित्य के शासन काल से चली आ रही है. राजा विक्रमादित्य इन देवियों की पूजा किया करते थे. उन्हीं के समय से नवरात्रि के महाअष्टमी पर्व पर यहां सरकारी अधिकारी व साधु संत के द्वारा पूजन किये जाने की परंपरा शुरू हुई. यह पूजन विश्व कल्याण और नगर की शांति सुख समृद्धि के लिए की जाती है.
कलेक्टर व एसपी निभाते परम्परा
छोटी नवरात्र में कलेक्टर व एसपी और बड़ी नवरात्र में साधु संत माता को देशी मदिरा का भोग लगा कर परंपरा को पूरा करते हैं. आज चैत्र माह की बड़ी नवरात्र पर इस साल साधु संतो ने पूजन किया. अब अगली नवरात्र में जिला कलेक्टर एसपी पूजा कर परंपरा का निर्वहन करेंगे.
नगर पूजन
चौबीस खंबा स्थित देवी महामाया और देवी महालाया की प्रतिमाओं की पूजन के बाद नगर पूजन यात्रा शुरू होती है. माना जाता है यह नगर पूजन राजा विक्रमादित्य के शासनकाल के समय से चली आ रही है. सरकारी अधिकारी व साधु संत महाअष्टमी पर्व पर विश्व कल्याण और नगर की शांति और सुख समृद्धि के लिए इसे करते हैं.
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शराब की हांडी लिए 27 किलोमीटर पैदल भ्रमण!
मंदिर में पूजन के बाद होने वाली नगर पूजन यात्रा में नगर कोतवाल एक ऐसी हांडी जिसमें छोटा सा छेद होता है, उसे लेकर करीब 27 किलोमीटर पैदल भ्रमण करते हैं. मार्ग में आने वाले करीब 40 मंदिरों में मां को मदिरा ही अर्पित की जाती है. बताया जाता है कि राजाओं के शासनकाल के बाद इसे जागीरदार, जमींदार पूरी करते रहे हैं और परम्परा आज भी जारी है.
इतिहास
मंदिर की तरह इसका इतिहास भी अनोखा है. भक्तों को ऐसा मानना है कि उज्जैन नगर में स्थित प्राचीन चौबीस खंबा. माता का द्वार है. नगर रक्षा के लिये यहां चौबीस खंबे लगे हुए थे. इसलिए इसे चौबीस खंबा द्वार कहते हैं. प्राचीन समय में इस द्वार पर 32 पुतलियां विराजमान थीं. यहां हर रोज एक राजा आता था, जिससे पुतलियां प्रश्न पूछती थीं. राजा इतना घबरा जाता था कि डर की वजह से उसकी मृत्यु हो जाती थी. जब विक्रमादित्य की बारी आई तो उन्होंने नवरात्रि की महाअष्टमी पर देवी की पूजा की और पुतलियों के प्रश्नों का उत्तर दिया. तब उन्हें माता का आशीर्वाद मिला. तभी से नगर वासी माता को पूजते आए हैं.
रिपोर्ट: राहुल राठौर, उज्जैन