Surajkund Fair: सूरजकुंड मेले में 42 देशों के 648 कारीगरों ने लिया भाग
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Surajkund Fair: सूरजकुंड मेले में 42 देशों के 648 कारीगरों ने लिया भाग

फरीदाबाद में 38वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड शिल्प मेले का उद्घाटन 7 फरवरी को हुआ. इस वर्ष मध्य प्रदेश को थीम राज्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है. यह मेला 7 से 23 फरवरी तक चलेगा और इस बार यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. इस मेले में 42 देशों के 648 कारीगरों ने भाग लिया है.

Surajkund Fair: सूरजकुंड  मेले में 42 देशों के 648 कारीगरों ने लिया भाग

Surajkund Fair: फरीदाबाद में 38वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड शिल्प मेले का उद्घाटन 7 फरवरी को हुआ. इस वर्ष मध्य प्रदेश को थीम राज्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है. यह मेला 7 से 23 फरवरी तक चलेगा और इस बार यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है.

इस मेले में 42 देशों के 648 कारीगरों ने भाग लिया है. यह संख्या मेले की अंतरराष्ट्रीय पहचान को दर्शाती है. इस बार मेले का मुख्य विषय ओडिशा और मध्य प्रदेश राज्य है, जो इन राज्यों की कला और संस्कृति को विश्व स्तर पर प्रद र्शित करने का एक बेहतरीन अवसर है. फरीदाबाद में आयोजित सूरजकुंड शिल्प मेला न केवल एक सांस्कृतिक उत्सव है, बल्कि यह मध्य प्रदेश के समृद्ध हस्तशिल्प और सांस्कृतिक धरोहर को विश्व भर में पहचान दिलाने का एक महत्वपूर्ण मंच बन चुका है. इससे कारीगरों और कलाकारों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला प्रदर्शित करने का यह बेहतरीन अवसर मिला है.

मेले में मध्य प्रदेश की हस्तशिल्प और लोक कला की प्रदर्शनी में चंदेरी और महेश्वरी साड़ियों, बाग प्रिंट, गोंड पेंटिंग, ढोकरा शिल्प, अजरक प्रिंट, भीली गुड़िया, लौह शिल्प, कशीदाकारी और खादी उत्पादों का शानदार प्रदर्शन किया जा रहा है. यह विविधता दर्शाती है कि किस प्रकार विभिन्न शिल्पकला के माध्यम से संस्कृति को संजोया जा सकता है. 38वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेले में मध्य प्रदेश के थार जिले से विभिन्न प्रकार की साड़ियां लेकर आई प्रियंका बाहिती ने बताया कि वह प्राकृतिक तरीके से साड़ियां बनाती हैं. उनके द्वारा साड़ियों में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है, जिसमें किसी भी प्रकार के केमिकल का प्रयोग नहीं होता है.

प्रियंका ने बताया कि साड़ियों की प्रिंटिंग में ब्लॉक प्रिंटिंग का काम होता है. इसमें फ्रूट कलर, नीम की छाल, चाय पत्ती, लोहे के जंग, फिटकरी और नील का उपयोग किया जाता है. यह प्राकृतिक तरीके से बनाए गए रंगों का प्रयोग साड़ियों की खूबसूरती को और बढ़ाता है. प्रियंका बाहिती ने कहा कि यह मेला प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और शिल्पकला को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का बेहतरीन अवसर है. प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए शिल्पकार और हथकरघा कारीगर अपने उत्कृष्ट उत्पादों का प्रदर्शन कर रहे हैं. यह मेला न केवल कारीगरों को अपनी कला प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि उन्हें ग्राहकों और व्यापारियों से भी सीधे जुड़ने का एक अनमोल मौका देता है.