Delhi CM oath ceremony: जहां इमरजेंसी के खिलाफ गूंजे थे नारे, आज वहीं बनेगी BJP की नई सरकार
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Delhi CM oath ceremony: जहां इमरजेंसी के खिलाफ गूंजे थे नारे, आज वहीं बनेगी BJP की नई सरकार

Delhi CM oath ceremony: बीजेपी ने दिल्ली के नए मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण के लिए रामलीला मैदान को चुनकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है. यह मैदान हमेशा बदलाव का प्रतीक रहा है और अब बीजेपी इसे अपने विकास, स्थिरता और मजबूत नेतृत्व के संदेश के रूप में पेश करना चाहती है.

 

Delhi CM oath ceremony: जहां इमरजेंसी के खिलाफ गूंजे थे नारे, आज वहीं शपथ लेंगी CM रेखा गुप्ता

Delhi CM oath ceremony: दिल्ली का रामलीला मैदान केवल एक खुला स्थल नहीं, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक चेतना का प्रतीक है. यह वही मैदान है, जहां 1975 में इमरजेंसी के खिलाफ सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था. आज इसी ऐतिहासिक स्थल पर भाजपा का नया मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण करेगा. यह संयोग नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में एक शक्तिशाली संदेश है. जहां कभी लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई लड़ी गई थी, वहीं अब सत्ता का नया अध्याय लिखा जाएगा. यह मैदान सत्ता विरोधी संघर्ष और विजय का गवाह रहा है और अब यह भाजपा की ताकत का केंद्र बन रहा है. आपातकाल के दौरान इसी मैदान से लोकतंत्र की बहाली की हुंकार भरी गई थी. 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने से लेकर 2011 के अन्ना आंदोलन और 2014 में मोदी लहर तक, यह मैदान बदलाव की बुनियाद बना है. अब, भाजपा की नई सरकार के शपथ ग्रहण के साथ, यह मैदान एक बार फिर राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बनने जा रहा है. क्या यह सत्ता परिवर्तन केवल संयोग है या फिर इतिहास खुद को दोहरा रहा है? भाजपा का यह कदम न केवल दिल्ली, बल्कि पूरे देश को संदेश देगा कि राजनीतिक संघर्षों के केंद्र रहे इस मैदान में अब उनकी विजय का परचम लहराएगा.

सत्ता और संघर्ष का प्रतीक
रामलीला मैदान की पहचान सिर्फ एक सांस्कृतिक मंच के रूप में नहीं, बल्कि एक राजनीतिक अखाड़े के रूप में भी हुई है. आजादी से पहले इस मैदान ने स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनों को देखा, तो आजादी के बाद यह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, संपूर्ण क्रांति और कई बड़े राजनीतिक उथल-पुथल का केंद्र बना. 1975 में जब जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था, तो इसी मैदान से उन्होंने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ बिगुल फूंका था. इसी मैदान पर इंदिरा गांधी के आपातकाल के खिलाफ सबसे बड़ी रैली हुई थी. 1977 में जब आपातकाल हटा और पहली बार देश में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी, तब भी इस मैदान ने परिवर्तन की गूंज सुनी थी. यह मैदान गवाह रहा है, जब सत्ता के गलियारों में उथल-पुथल मचती है तो उसकी शुरुआत यहीं से होती है.

सत्ता परिवर्तन का केंद्र
रामलीला मैदान राजनीति का बैरोमीटर भी रहा है. 2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में जनलोकपाल आंदोलन की शुरुआत इसी मैदान से हुई थी. उस आंदोलन ने कांग्रेस के खिलाफ देशभर में माहौल बनाया और इसी आंदोलन की कोख से आम आदमी पार्टी (आप) का जन्म हुआ. 2013 में जब अरविंद केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने अपनी शपथ इसी ऐतिहासिक मैदान में ली. 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में भी ‘आप’ ने रामलीला मैदान को ही चुना. लेकिन अब, 2025 में एक नया इतिहास लिखा जा रहा है. 27 साल बाद, बीजेपी का मुख्यमंत्री इसी मैदान में शपथ लेने जा रहा है. यह न केवल दिल्ली की राजनीति में बीजेपी की मजबूत वापसी का संकेत है, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी एक नए समीकरण की नींव रख सकता है.

राजनीतिक रणनीति का केंद्र
रामलीला मैदान सिर्फ आंदोलनों और शपथ ग्रहण का मंच नहीं है, बल्कि यह पार्टियों की रणनीतिक राजनीति का केंद्र भी है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने यहीं से विशाल जनसभा को संबोधित किया था. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन ने भी अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिए इसी मैदान को चुना था. यह दिखाता है कि चाहे सरकार में कोई भी हो, सत्ता परिवर्तन के लिए यह मैदान सबसे उपयुक्त माना जाता है.

बीजेपी का नया संदेश
बीजेपी ने दिल्ली के नए मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण के लिए रामलीला मैदान को चुनकर एक राजनीतिक संदेश भी दे दिया है. यह मैदान परिवर्तन का प्रतीक है और बीजेपी इसे विकास, स्थिरता और निर्णायक नेतृत्व के रूप में स्थापित करना चाहती है. पार्टी के लिए यह सिर्फ एक शपथ ग्रहण नहीं, बल्कि एक शक्ति प्रदर्शन भी होगा, जहां वह अपने समर्थकों को एकजुट कर अगले राजनीतिक सफर की तैयारी करेगी. रामलीला मैदान के इतिहास को देखते हुए, यह कहना गलत नहीं होगा कि यह मैदान केवल दशहरा के रावण दहन का ही गवाह नहीं, बल्कि सत्ता के शिखर पर चढ़ने और गिरने की कहानी का भी साक्षी रहा है. अब देखना यह है कि 20 फरवरी को होने वाला यह समारोह दिल्ली की राजनीति और राष्ट्रीय परिदृश्य में कितने बड़े बदलाव का संकेत देता है.

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