Urdu Poetry in Hindi: एक झोंका तिरे पहलू का महकती हुई याद...

Siraj Mahi
Feb 02, 2025

फिर छिड़ी रात बात फूलों की, रात है या बरात फूलों की

हयात ले के चलो काएनात ले के चलो, चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो

बज़्म से दूर वो गाता रहा तन्हा तन्हा, सो गया साज़ पे सर रख के सहर से पहले

दीप जलते हैं दिलों में कि चिता जलती है, अब की दीवाली में देखेंगे कि क्या होता है

ये तमन्ना है कि उड़ती हुई मंज़िल का ग़ुबार, सुब्ह के पर्दे में याद आ गई शाम आहिस्ता

एक था शख़्स ज़माना था कि दीवाना बना, एक अफ़्साना था अफ़्साने से अफ़्साना बना

एक झोंका तिरे पहलू का महकती हुई याद, एक लम्हा तिरी दिलदारी का क्या क्या न बना

न किसी आह की आवाज़ न ज़ंजीर का शोर, आज क्या हो गया ज़िंदाँ में कि ज़िंदाँ चुप है

इश्क़ के शोले को भड़काओ कि कुछ रात कटे, दिल के अंगारे को दहकाओ कि कुछ रात कटे

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