Urdu Poetry in Hindi: हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका...

Siraj Mahi
Feb 09, 2025

हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका, यूँ भी हुआ हिसाब बराबर कभी कभी

साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन, तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है

बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा, कुछ ख़राबे भी तो आबाद हुआ करते हैं

लोग माँगे के उजाले से हैं ऐसे मरऊब, रौशनी अपने चराग़ों की बुरी लगती है

जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा, उस की क़िस्मत में रही दर-बदरी कहते हैं

आती है धार उन के करम से शुऊर में, दुश्मन मिले हैं दोस्त से बेहतर कभी कभी

मय-कशी के भी कुछ आदाब बरतना सीखो, हाथ में अपने अगर जाम लिया है तुम ने

हम तो कहते थे ज़माना ही नहीं जौहर-शनास, ग़ौर से देखा तो अपने में कमी पाई गई

अब धनक के रंग भी उन को भले लगते नहीं, मस्त सारे शहर वाले ख़ून की होली में थे

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