ज़ख़्मों ने मुझमें दरवाज़े खोले हैं, मैंने वक़्त से पहले टांके खोले हैं
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया, इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
किसे ख़बर है कि उम्र बस उसपे ग़ौर करने में कट रही है, कि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊंगा, मैं भीग जाऊंगा छतरी नहीं बनाऊंगा
ये एक बात समझने में रात हो गई है, मैं उससे जीत गया हूँ कि मात हो गई है
जब उसकी तस्वीर बनाया करता था, कमरा रंगों से भर जाया करता था
सो रहेंगे कि जागते रहेंगे, हम तिरे ख़्वाब देखते रहेंगे
अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थी, वो इक परी जो मुझे सब्ज़ करने आई थी
बिछड़ कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा, वो थक जाएगा और मेरे गले से आ लगेगा