जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध
तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के, पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के
डगमगा रहे हों पांव लोग जब हंसते हों, मत चिढ़ो,ध्यान मत दो इन छोटी बातों पर
आशा के स्वर का भार पवन को लेकिन लेना ही होगा, जीवित सपनों के लिए मार्ग मुर्दों को देना ही होगा
जहां पालते लोग लहू में हालाहल की धार, क्या चिंता यदि वहाँ हाथ में नहीं हुई तलवार
है बड़ी बात आजादी का पाना ही नहीं जुगाना भी, बलि एक बार ही नहीं उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी
शान्ति नहीं तब तक जब तक, सुख-भाग न नर का सम हो, नहीं किसी को बहुत अधिक हो, नहीं किसी को कम हो
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है, दो राह समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है