आंख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो, ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आंखों में पानी चाहिए, ऐ ख़ुदा दुश्मन भी मुझ को ख़ानदानी चाहिए
दोस्ती जब किसी से की जाए, दुश्मनों की भी राय ली जाए
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यूं हैं, इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूं हैं
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है, चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए, मैं पीना चाहता हूं पिला देनी चाहिए
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं, मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं
शाम ने जब पलकों पे आतिश-दान लिया, कुछ यादों ने चुटकी में लोबान लिया