दर्द अपनाता है पराए कौन, कौन सुनता है और सुनाए कौन
मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा, वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूं हारा
छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था, अब मैं कोई और हूं वापस तो आ कर देखिए
तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया, तू ने ढाला है और ढले हैं हम
हर खुशी में कोई कमी-सी है, हंसती आंखों में भी नमी-सी है
दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं, ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
कभी ये लगता है अब ख़त्म हो गया सब कुछ, कभी ये लगता है अब तक तो कुछ हुआ भी नहीं
बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी, ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना, सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना