बसंत पंचमी देशभर में धूमधाम से मनाई जाती है. इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की अराधना की जाती है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि बसंत पंचमी पर सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह को खूब सजाया जाता है.
रिपोर्ट्स के अनुसार, दरगाह पर बसंत पंचमी का त्योहार हिंदू और मुसलमान दोनों साथ मिलकर मनाते हैं.
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक माघ माह के पांचवें दिन यानी पंचमी को बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है.
इस्लामी कैलेंडर में पांचवें महीने की तीसरी तारीख को सूफी बसंत के रूप में भी मनाया जाता है. इसकी शुरुआत सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया के समय में हुई थी, जिसकी एक कहानी भी है.
कहते हैं कि हजरत औलिया की कोई संतान नहीं थी. वे अपनी बहन के बेटे ख्वाजा तकीउद्दीन नूंह से बहुत प्यार करते थे. बीमारी के चलते ख्वाजा नूंह का निधन हो गया.
ख्वाजा नूंह की मौत के बाद हजरत निजामु्द्दीन औलिया को गहमा सदमा पहुंचा. और उन्होंने अपने निवास से निकलना बंद कर दिया. इस कारण उनके अनुयायी और मशहूर कवि अमीर खुसरो परेशान हो गए.
एक दिन अमीर खुसरो के गांव की कुछ महिलाएं पीले कपड़े पहन सरसों के फूल लेकर ख्वाजा के निवास के पास से जाते देखा. अमीर खुसरों ने उनके लिबास का कारण पूछा.
महिलाओं ने उत्तर दिया कि वे अपने ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए मंदिर में फूल चढ़ाने जा रही हैं. फिर अमीर खुसरो ने पूछा ऐसा करने से ईश्वर प्रसन्न होंगे, महिलाओं ने हां में उत्तर दिया.
अमीर खुसरो की वेशभूषा देखकर हजरत निजामुद्दीन औलिया प्रसन्न हो गए. लंबे वक्त बाद उनके चेहरे पर मुस्कान देख वहां बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाने लगा.
इसके बाद से ही आज तक बसंत पंचमी पर दिल्ली की हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह में साज-सजावट और धूम देखने को मिलने लगी.