Prithvinath Temple: 26 फरवरी को महाशिवरात्रि है. इस मौके पर हम आपको एशिया के सबसे ऊंचे शिवलिंग के बारे में बताने जा रहे हैं। बताया जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना भीम ने किया था.यह मंदिर वास्तकला का सर्वोत्तम नमूना है. इस मंदिर को पृथ्वीनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है.
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में एक ऐसा मंदिर स्थित है, जिसका इतिहास जानकर आप हैरान हो जाएंगे. दरअसल गोंडा जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूरी पर स्थित पृथ्वीनाथ मंदिर है, जहां का इतिहास द्वापर युग से जुड़ा है.
इतना ही नहीं कहा जाता है कि यह मंदिर एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग वाला मंदिर है. तो चलिए आज हम आपको इस रिपोर्ट में इस मंदिर का इतिहास बताते हैं जिसे सुनकर आप हैरान हो जाएंगे.
दरअसल गोंडा जिले में पृथ्वीनाथ मंदिर का इतिहास रोचक है. पुरातत्व विभाग की जांच में इस मंदिर का शिवलिंग साढ़े छह सौ वर्ष पुराना माना जाता है. इतना ही नहीं इतिहासकारों के मुताबिक इस मंदिर का इतिहास द्वापर युग से जुड़ा हुआ है.
ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर की स्थापना की गई थी. मान्यता के अनुसार यहां दर्शन पूजन करने से सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं. इतना ही नहीं मंदिर के पुजारी ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण भीम ने कराया था.
गोंडा के आसपास के जिलों से भारी संख्या में भक्त भगवान शंकर का आशीर्वाद लेने के लिए इस मंदिर में पहुंचते हैं. महाशिवरात्रि और सावन माह में यहां प्रतिदिन लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है.
यहां पर जलाभिषेक का विशेष महत्व है. यहां पर स्थापित शिवलिंग की ऊंचाई इतनी है कि एड़ी उठाकर ही जलाभिषेक किया जा सकता है. ये ऊपर तो पांच फुट है मगर धरती के नीचे करीब 64 फुट बताया जाता है।
पुजारी और स्थानीय लोगों के मुताबिक 5 पांडव मां कुंती के साथ अज्ञातवास में आए यहीं पर रहकर अपना जीवन-यापन किया था. किवदंतियों के अनुसार यहीं पर बकासुर नामक राक्षस का वध भीम ने किया
बकासुर राक्षस का वध करने के बाद भीम को ब्रह्महत्या का पाप लगा था. ब्रह्महत्या से मोक्ष पाने के लिए भगवान श्री कृष्ण के आदेश अनुसार लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व द्वापर में इस शिवलिंग की स्थापना भीम के द्वारा की गई थी. उस समय इस मंदिर का नाम था भीमेश्वर महादेव. बाद में इस मंदिर का नाम पृथ्वीनाथ मंदिर पड़ा.
इतिहासकारों के अनुसार, मुगल सम्राट के कार्यकाल में किसी सेनापति ने यहां पूजा कीऔर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. ऐसा बताया जाता है कि भीम द्वारा स्थापित यह शिवलिंग धीरे-धीरे जमीन में समा गया था. इसके बाद खरगूपुर के राजा मानसिंह की अनुमति से पृथ्वीनाथ सिंह के नाम के एक शख्स ने मकान निर्माण के लिए यहां पर खुदाई शुरू करा दी।
बताया जाता है कि उसी रात पृथ्वीनाथ सिंह को सपने में पता चला कि उस जमीन के नीचे सात खंडों का एक शिवलिंग दबा हुआ है. उसके बाद शिवलिंग खोदवाकर पूजा-अर्चना शुरू करा दी गई। इसके बाद ही इस मंदिर का नाम पृथ्वीनाथ मंदिर पड़ गया.
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि स्वयं करें. एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.